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गांधी जयंती पर विशेष लेख
विषय:अहिंसा और सत्य के पुजारी महात्मा गांधी को याद करने का ढोंग या भूलने की क़वायद?
प्रत्येक वर्ष 2 अक्टूबर को राष्ट्रपिता महात्मा मोहन दास कर्मचंद गांधी के जन्म दिवस को गांधी जयंती और अहिंसा दिवस के रूप में पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, और सब मिलकर राष्ट्रपिता को याद करने का ढोंग करते हैं। ऐसा ही एक ढोंग पिछ्ले वर्ष गांधी जयंती पर “स्वच्छता मिशन” के नाम पर किया गया। पूरे एक साल बाद ईमानदारी से निष्पक्ष आकलन कर बताईये, कितना कामयाब रहा यह मिशन? अधिकांश नक़ली कूडा करकट साफ कर फोटो खिंचवाने और समाचार प्रकाशित और प्रसारित करवाने तक ही नहीं सिमट गया?
ऐसा क्यूं है कि हम मात्र एक दिन बापू जी के कर्तव्यों को याद कर उन्हें भुला देते हैं? आखिर क्यूं इस देश में आज भी कई लोग गांधी जी का विरोध करते हैं? आखिर गांधी जी की शख्सियत का सच क्या है?
जिस भारत का सपना राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने आजादी से पहले देखा था उस सपने को हमारे नीति-निर्माताओं ने भारी-भरकम फाइलों के नीचे दबा दिया। आज देश में भ्रष्टाचार हर जगह सर चढ़कर बोल रहा है। एक तरफ जहां हजारों करोड़ से ज्यादा के घोटाले हो रहे हैं तो दूसरी तरफ घोटाले करने वाले दाग़ियों को बचाने के लिए क़ानून और अध्यादेश भी लाए जा रहे हैं। एक के बाद एक गवाहों की हत्याऐं हो रही हैं। लेकिन भ्रष्टाचार समाप्ति का दावा कर सत्ता प्राप्त करने वाले सत्ताधीशों के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही। वे देश विदेश की यात्राओं में मगन हैं। काले धन को शेख चिल्ली का ख़्वाब बना दिया गया है।
आजादी के दौरान जिस व्यवस्था को संविधान के नीति-निर्माताओं ने बनाया था उसमें आज दोष ही दोष दिखाई दे रहा है, देश में अराजकता, दंगे, भ्रष्टाचार,कन्या भ्रूण हत्या, घरेलू हिंसा, शारीरिक शोषण और दहेज जैसी समस्याएं अभी बरकरार हैं जो बताती हैं कि व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने राजनीति को सेवा का माध्यम बनाया था, आज दंगों, अपराधों, हथियारों और बारूद के अनाधिकृत प्रयोग के मास्टर माइंड राजनीति में अहम भूमिका में हैं। महात्मा गांधी ने जिस स्वस्थ समाज की कल्पना की थी वहां हिंसा, घृणा, भ्रष्टाचार, असहिष्णुता ने जगह बना ली है। आज देश में राजनीतिक फायदे के लिए मानवता का लहू बहाया जा रहा है. दो समूहों में दंगे कराकर अपने भविष्य को सुरक्षित करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
वर्तमान में राजनीति अपराध का अड्डा बन चुकी है जिसकी वजह से लोगों का राजनीति और राजनेताओं पर से भरोसा उठ चुका है।
बापू ने राष्ट्रहितैषी उद्योगपतियों के धन उपयोग आम समाज और देश का भला करने में ख़र्च किया था, आज देश और आम आदमी की संपदा कोड़ियों के दाम उद्योगपतियों को दी जारही है। आम आदमी की छोटी-2 सुविधाओं में भी कटौती कर उद्योगपतियों को बड़ी-2 सुविधायें दी जा रही है। उद्योगपतियों के हाथॉ की कठपुतलियां धर्म और विकास का बुर्क़ा पहन कर आम जनता और विशेष कर नौजवानों को गुमराह कर रही हैं।
बापू ने सच को भगवान कहा था आज जो जितना बड़ा झूठा वो उतना बड़ा नेता है। धर्म निरपेक्ष राष्ट्र की साफ घोषणा करने वाले संविधान अनुसार शपथ लेकर सत्ता संभालने वाले ही धर्म निरपेक्षता का मज़ाक़ उडा रहे हैं।
तथाकथित देशप्रेमियों और छद्म राष्ट्रवादियों की नजर में बापू की वजह से देश का विभाजन हुआ था। देश के लिए न जानें कितने डंडे खाने का गांधीजी को यह फल मिला कि आज उनकी पुण्यतिथि पर इस विचार धारा के किसी व्यक्ति और संगठन को उन्हें याद तक करने का समय नहीं। भारतीय मुद्रा पर गांधीजी तो सबको चाहिए लेकिन् मूल जीवन में गांधी जी के बताए रास्ते पर चलना तो दूर लोग गांधी जी की परछाई से भी दूर रहना पसंद करते हैं। वह संगठन जिसके कार्यालय में कभी बापू की तस्वीर नहीं लगी, जहां कभी तिरंगा नहीं फहराया गया, आज देश के नीति निर्धारण में हस्ताक्षेप करने का सक्रिय प्रयत्न कर अपना स्वार्थ सिध्द करने की आस लगाये बैठा है। उसके कुछ अनुयायियों ने हमारे देश की हर संस्था और व्यवस्था अपनी जड़ें मज़बूत कर ली हैं। यह लोग अपने और अपने आक़ाओं के निहित स्वार्थो की पूर्ति के लिये समय -2 पर सेवा क़ानूनों, न्यायिक और संवैधानिक व्यवस्था के साथ देश की सांझा संस्कृति, और धर्म निरपेक्षता का मखौल उड़ाते रहते हैं। राजनेता और नौकर शाह भी इनका कुछ बिगाड़ नहीं पाते।
आजादी के एक वर्ष के भीतर ही 30 जनवरी, 1948 को प्रार्थना सभा के दौरान नाथू राम गोड्से नाम के एक तथाकथित हिंदू राष्ट्रवादी/ आतंकवादी ने गोली मारकर महात्मा गांधी की एक बार हत्या कर दी थी।
लेकिन आज सच में लगता है गांधीजी मरे नहीं बल्कि हमने उन्हें मार दिया है और हम प्रतिदिन उनकी हत्या कर रहे हैं। साथ में गांधी जी के हत्यारे के महामण्डन उनको भूलने की क़वायद ही है। नाथू राम गोड्से को राष्ट्रवादी और बहादुर बताने वाले लोक सभा की शोभा (?) बने हुये हैं और गांधीवादी सडकों की ख़ाक छान रहे हैं । इसे विडम्बना कहें या देश का दुर्भाग्य?
आज गांधीजी की प्रासंगिकता पर बहस छिड़ी हुई है। आंदोलित समूह का हर सदस्य इनके सिद्धांतों का पालन करने का दावा करता है लेकिन जब व्यक्तिगत तौर पर इन आदर्शों के पालन की बात की जाती है तो असहज स्थिति पैदा होती है, यही विरोधाभास तकलीफ देह है।
जिस काम को विधानपालिका और कार्यपालिका के लिए निर्धारित किया गया है उसे न्यायपालिका के दरवाजे ले जाया जा रहा है।
गांधी जी के मूल्यों पर चलने का जोखिम युवा वर्ग भी लेना ही नहीं चाहता। गर्म-मिजाज और अधिकारों के आगे कर्तव्यों को भूल जाने वाला युवा वर्ग किसी भी कीमत पर अहिंसा के मार्ग पर नहीं चलता. आज एक गाल पर थप्पड़ पड़ने पर दूसरा गाल आगे करने वालों की जगह “ईंट का जवाब पत्थर से देने वालों” की संख्या कहीं अधिक है।
गांधी जयंती पर अपने बापू को याद करना तो सभी के लिए आसान है। दो मिनट उनका नाम लिया और याद कर लिया स्वतंत्रता आंदोलन के सबसे बड़े योद्धा को जिसने बिना हिंसा किए देश को आजादी दिलाई। लेकिन क्या हम उनकी शिक्षा पर भी अमल कर सकते हैं?
आइए आज एक प्रण लें कि कम से कम व्यक्तिगत तौर पर हमसे जितना संभव हो सकेगा हम अपने जीवन में गांधीजी के मूल्यों को लाने का प्रयास करेंगे। तभी देश और समाज में शांति और समृध्दि आ सकेगी। एक बार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से पूछा गया, “भगवान क्या है?” उन्होंने जवाब दिया “सच ही भगवान है। “ काश, हम उनकी सिर्फ इस सीख पर ईमानदारी से अमल करलें तो यही सच्ची श्रृध्दांजली होगी उस महान आत्मा के प्रति जिसे हम प्यार से ”बापू” कहते हैं।
लाल बहादुर शास्त्री .. जिसने हमेशा अपनी ऊर्जा देश के समग्र विकास में लगाई।। जो किसानों को उनकी उपज बढ़ाने के लिए प्रचुर अवसर प्रदान करने के लिए ईमानदार था, जिसे देश के जवानों पर पूरा भरोसा था। जो दिल और आत्मा से ईमानदार था, जिसके कर्म और वचन में कोई अंतर नहीं था। भारत के महान सपूत, उस छोटे क़द के महान व्यक्तित्व को उसकी जयंती पर हार्दिक आदरांजली और श्रद्धांजलि!
भवदीय
दिनांक: 28.09.2015. (सैय्यद शहनशाह हैदर आब्दी)
वरिष्ठ समाजवादी चिंतक
झांसी (उ.प्र.)
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