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भागवत और ओवैसी-एक सिक्के दो पहलू!

SHAHENSHAH KI QALAM SE! शहंशाह की क़लम से!
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भागवत और ओवैसी-एक सिक्के दो पहलू!

महान देश के प्यारे देश वासियो।

हम किसी पूर्वाग्रह से ग्रस्त नहीं।लेकिन यह जानना ज़रूर चाहते हैं कि अपने समाज के एक प्रतिशत से भी कम का प्रतिनिधित्व करने वाले मोहन भागवत और असदउद्दीन ओवैसी हैं कौन, कि इनको इतना भाव दिया जाए?

भाई असदउद्दीन ओवैसी साहब,

ऐ मादरे वतन तुझे सलाम !!!

“दिल से निकलेगी न मर कर भी वतन की उल्फ़त,
मेरी मिट्टी से भी खुशबू-ए-वफ़ा आएगी।”

मेरे भाई-भारत माता कोई मूर्ति नहीं है कि जिसको पूजना है। भारत माता “मादरे वतन” का तसव्वुर (कल्पना) है। जिससे मोहब्बत और जिसका एहतराम किया जाता है।
“हुब्बुल वतनी निस्फुल ईमान!” – शरीअत ने वतन से मोहब्बत को “निस्फ़-ईमान”(आधे-ईमान) का दर्जा दिया हैं।

जनाब मोहन भागवत जी,

मुसलमान किसी के दबाव में नहीं, किसी के कहने से नहीं, दिल से मादर-ए-वतन हिन्दुस्तान से मोहब्बत करता है।

हम राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, भा.ज.पा. बल्कि पूरे संघ परिवार की आइडियोलॉजी को नहीं मानते।

हम क्या, 99% हिन्दु भी संघ के सिध्दान्तों से सहमत नहीं। वर्ना आज उनकी सदस्य संख्या एक दो करोड़ (स्वयं संघ के दावों के अनुसार) न होकर 60 या 70 करोड़ होती।

संघ होता कौन है, उसकी संवैधानिक हैसियत क्या है, यह मोहन भागवत या भैया जी होते कौन हैं हमारी लाइफ स्टाइल डिक्टेट करने वाले? हम उसके सदस्य नहीं, इसलिए उसके दिशा निर्देश मानने को बाध्य नहीं।

हम देश के संविधान से बंधे हैं और उसका सम्मान करते हैं। जो संघ परिवार के दिशा निर्देश नहीं माने वो देशद्रोही। यह कौन सा मापदंड है लोकतंत्र में?

वो संघटन जो खुद समय समय पर देश के संविधान की धज्जियां उड़ाता रहता है वो किस मुँह से राष्ट्रवाद की बात करता है?

हमें आम ज़िंदगी में “भारत माता की जय” “जय राम जी की” कहने में कोई परेशानी नहीं। यह आप भी जानते हैं। लेकिन कोई हमारे सामने का मवाली गुंडा लड़का भगवा अंगोछा कन्धे पर डालकर एक ग्रुप के साथ आकर हमसे कहे कि हिन्दुस्तान में रहना होगा तो यह सब कहना होगा। तो हमारा जवाब उसी के अंदाज़ में नकारात्मक होगा। क्योंकि हम किसी का बेजा दबाव किसी भी हाल में बर्दाश्त करने को तैयार नहीं। हमारे अज़ीम मुल्क का संविधान भी हमें इसकी इजाज़त देता है। यह बात संघ परिवार और उनके समर्थकों को अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए।

वो बेजा दख़ल अंदाज़ी से जितनी जल्दी बाज़ आ जाएँ, उतना अच्छा।

संघ जो कि हमारे ज्ञान के अनुसार देश के नियमानुसार पँजीकृत नहीँ है। अगर है तो कृपया उसकी पूंजीकरण संख्या और दिनांक बताएं?

उस जैसे अन्य संगठन जो देश के संविधानानुसार पँजीकृत हैं और समाजहित और देशहित के काम कर रहे हैं। वो भी संघपरिवार की तरह लोगों की निजी ज़िंदगी में दखल अंदाज़ी कर दिशा निर्देश जारी करने लगें तो अराजकता की स्थिति उत्पन्न नहीं हो जायेगी?

वो भी देश की केंद्र और राज्य सरकारों को देश और समाजहित में गाइड लाइन जारी करने लगें। तो क्या होगा?

क्या सरकार उनके पास जाकर अपना रिपोर्ट कार्ड पेश करेगी?

फिर किसी संगठन को संविधान से ऊपर समझने की छूट क्यों? ऊपर से सफ़ेद झूठ यह की संघ, भा.ज.पा. और सरकार के काम काज में दखल नहीं देता।
भाई, यह पब्लिक है सब समझती है।जिनके आँख पर भगवा पट्टी बंधी है वो नहीं समझेगें कि देश के संविधान और धर्मनिरपेक्ष स्वरूप के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है।

इन कमबख़्तो ने भगवा रंग का भी इतना दुरूपयोग किया कि अब यह महान सनातन धर्म का रंग कम, इन संगठनों की बपौती ज़्यादा लगता है।
देश के तिरंगे को एक रंगा करने की सुनियोजित साज़िश हो रही है। जिसे आम देशवासी हरगिज़ बर्दाश्त नहीं करेगा।

देश की सत्ता एक संवैधानिक परिवार के हाथ से निकलकर दूसरे असंवैधानिक परिवार के हाथ में विधिवत शांतिपूर्ण तरीके से हस्तांतरित हो गयी है। शेष कुछ नहीं बदला है। हमने संवैधानिक और असंवैधानिक परिवार शब्द का इस्तेमाल इस लिए किया, क्योंकि सोनिया संविधान के अनुसार चुनी हुई संसद सदस्य, कांग्रेस की अध्यक्षा और UPA की भी चेयरपर्सन थीं। जबकि संघ की कोई संवैधानिक हैसियत नहीं। फिर भी स्वयंभू ठेकेदार बना हुआ है और वर्तमान सरकार भी वोटों के तुष्टीकरण के खातिर मान्यता दिए हुए, इनके दिमाग़ खराब किये हुए है।

हमने संघ का इतिहास पढ़ा है, जिस तरह से वो एंटी मुस्लिम है और इस्लाम और मुसलमानों के लिए ज़हर उगलता रहता है, वो विचारधारा भी देश में दंगों के लिए ज़िम्मेदार है। हम उसे अपने अज़ीम मुल्क के लिए भी खतरनाक मानते हैं।

भाई, हमने आम चुनाव से पहले कहा था,”देश में “पूँजीवादी राजनैतिक व्यवस्था” लागू करने की साज़िश हो रही है।”

हमारी बात आज सच साबित हो रही है। यह देश के लोकतन्त्र के लिए खतरनाक है। ऐसा मेरा मानना है।

हमें अपने देश के उज्जवल भविष्य की, किसी छद्म राष्ट्रवादी से ज़्यादा चिंता है भाई।

धर्मनिरपेक्षता, हिन्दुस्तान की ब्रह्म शक्ति है । संघपरिवार इसका जिस तरह मज़ाक उड़ा कर संविधान का अपमान कर रहा है। वो तो देश की मूल आत्मा पर ही प्रहार है।

हर सच्चा देशभक्त इसकी कड़ी निंदा करता है।

आप देशहित सर्वोपरि रख कर और निष्पक्ष होकर मनन करेंगे तो हमारी बात से सहमत होंगे।

इसलिए समस्त धर्मनिरपेक्ष, देश से मोहब्बत करने वालों को, देशहित और समाजहित में, हर समाज के कट्टरपंथियों के विरुध्द सीना तानकर खड़ा होना ही होगा।

शुक्र है कि देहली और बिहार की जनता ने आशा की जो किरन दिखाई है वो पूरे देश में प्रकाश बन कर फैलेगी।

धर्म का चोला पहने, बे-ईमान पूंजीवादियों के दलालों से देश को आज़ाद कराने का यही एक रास्ता है।

हिन्दुस्तान ज़िंदाबाद था, ज़िंदाबाद है और हमेशा ज़िन्दाबाद रहेगा।
भारत माँ की जय थी , जय है और हमेशा जय रहेगी।

“हम तो मिट जाएंगे ऐ अर्ज़े वतन तुझको,
ज़िंदा रहना है क़यामत की सहर होने तक।”

हिन्दुस्तान ज़िंदाबाद!
हिन्दुस्तान पाइन्दाबाद!!
जयहिन्द,जय हिन्द, जय हिन्द!!!

सैयद शहनशाह हैदर आब्दी
समाजवादी चिंतक-झांसी।

भागवत और ओवैसी-एक सिक्के के दो पहलू !
भागवत और ओवैसी-एक सिक्के के दो पहलू !

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