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“आधुनिक युवा पीढ़ी और रक्षाबंधन”

SHAHENSHAH KI QALAM SE! शहंशाह की क़लम से!
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“आधुनिक युवा पीढ़ी और रक्षाबंधन”
रक्षाबंधन, सात्विक प्रेम का त्योहार है। तीन नदियों के संगम की तरह यह दिन तीन उत्सवों का दिन है। श्रावणी पूर्णिमा, नारियल पूर्णिमा और रक्षाबंधन। श्रावण व श्रावक के बंधन का दिन है रक्षाबंधन। सावन के महीने में मनुष्य पावन होता है । उसकी आत्मा ही उसका भाई है और उसकी वृत्तियां ही उसकी बहन हैं। प्रेम वासना के रूप में प्रदर्शित हो तो इंसान को रावण और प्रेम प्रार्थना के रूप में प्रदर्शित होने पर इंसान को राम बना देता है।
रक्षाबंधन, सात्विक प्रेम का त्योहार है। तीन नदियों के संगम की तरह यह दिन तीन उत्सवों का दिन है। श्रावणी पूर्णिमा, नारियल पूर्णिमा और रक्षाबंधन। श्रावण व श्रावक के बंधन का दिन है रक्षाबंधन। सावन के महीने में मनुष्य पावन होता है । उसकी आत्मा ही उसका भाई है और उसकी वृत्तियां ही उसकी बहन हैं। प्रेम वासना के रूप में प्रदर्शित हो तो इंसान को रावण और प्रेम प्रार्थना के रूप में प्रदर्शित होने पर इंसान को राम बना देता है।
वैसे तो यह त्योहार, मुख्यत: हिन्दुओं में प्रचलित है पर इसे हिन्दुस्तान के सभी धर्मों के लोग समान उत्साह और भाव से मनाते हैं। पूरे हिन्दुस्तान में इस दिन का माहौल देखने लायक होता है और हो भी क्यूं ना, यही तो एक ऐसा ख़ास दिन है जो भाई-बहनों के लिए बना है।
भाई-बहन का रिश्ता अद्भुत स्नेह व आकर्षण का प्रतीक है। बचपन में पिता सुरक्षा करता है, जवानी में पति और बुढ़ापे में बेटा। परंतु भाई-एक ऐसा रिश्ता है, जो बचपन से लेकर बुढ़ापे तक बहनों को हिफाज़त का एहसास कराता है।
साम्प्रदायिक सौहार्द का प्रतीक- रक्षा बन्धन !
इतिहास में भी राखी के महत्व के अनेक उल्लेख मिलते हैं। लगभग चार सौ साल पहले मेवाड़ नरेश महाराना संग्राम सिंह की मृत्यु के बाद राजकुमार विक्रमादित्य सिंहासन पर विराजमान हुये। विक्रमादित्य बहुत कमसिन थे और मेवाड़ के सरदारों में आपसी फूट और रंजिश चरम पर थी। गुजरात के शासक बहादुरशाह ने मौक़ा ताड़कर हमला कर दिया। महारानी कर्मावती ने मुगल राजा हुमायूं को राखी भेज कर रक्षा-याचना की थी। हुमायूं ने राखी स्वीकार कर अपनी बहन की रक्षा का संकल्प लिया और मेवाड़ की बचाकर अपने वचन की लाज रखी।
कहते हैं, सिकंदर की पत्‍‌नी ने अपने पति के हिंदू शत्रु पुरु को राखी बांधकर उसे अपना भाई बनाया था और युद्ध के समय सिकंदर को न मारने का वचन लिया था। पुरु ने युद्ध के दौरान हाथ में बंधी राखी का और अपनी बहन को दिए हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकंदर को जीवनदान दिया।
इस तरह यह त्योहार साम्प्रदायिक सौहार्द और आपसी विश्वास का भी प्रतीक बना। यह प्रथा आज भी जीवित है। विभिन्न धर्मों के मानने वाले अपनी मुंह बोली बहनों से राखी बंधवा कर अपने वचन और धर्म दोनों का पालन करते हैं। यह सिर्फ हमारे अज़ीम मुल्क हिन्दुस्तान में ही संभव है।
“वर्तमान युग में रक्षा बन्धन की प्रासंगिकता !”
आज आदमी ने ने पक्षी की तरह आकाश में उ़ड़ना सीख लिया, मछली की तरह पानी में तैरना सीख लिया है, लेकिन ज़मीन पर इंसान की तरह चलना नहीं सीखा है। वह दूसरों की क्रिया की नकल बड़ी अच्छी तरह करता है किंतु स्वयं के असली रूप में आना भूल गया है।
भारत में जहां बहनों के लिए इस विशेष पर्व को मनाया जाता है वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो भाई की बहनों को गर्भ में ही मार देते हैं। यह बहुत ही शर्मनाक बात है कि जिस देश में कन्या-पूजन का विधान शास्त्रों में है, वहीं कन्या-भ्रूण हत्या के मामले सामने आते हैं। यह त्योहार हमें यह भी याद दिलाता है कि बहनें हमारे जीवन में कितना महत्व रखती हैं।
अगर हमने कन्या-भ्रूण हत्या पर जल्द ही काबू नहीं पाया तो मुमकिन है देश में लिंगानुपात और तेजी से घटे और एक दिन सामाजिक संतुलन भी ऐसा बिगडे कि संभालना मुश्किल हो जाये।
आज जब रिश्तों की मर्यादाऐं तार-2 हो रही हैं। आज की तथाकथित तरक़्क़ी पसन्द युवा पीढी भाई-बहन के रिश्ते बनाने से ज़्यादा दोस्त बनने-बनाने में रुचि ले रही है। भाई-बहन के रिश्ते बनाने वालों को रूढिवादी समझा जाता है , आधुनिक लड़कियां भी भाई-बहन के रिश्ते बनाने वालों का उपहास उड़ाने में पीछे नहीं रहती।
“लिविंग रिलेशनशिप” का चलन बढ रहा है। परिणाम स्वरूप काम वासना सिर चढ़कर बोल रही है। सामान्यतय: महिलाओं और विशेषकर युवतियों के प्रति अत्याचार बढने का एक कारण यह भी है। इसके लिये कुछ हद तक वे भी ज़िम्मेदार हैं।
आज की इस तथाकथित तरक़्क़ी पसन्द युवा पीढी को भाई-बहन के रिश्ते और रक्षा बन्धन का महत्व समझाने के लिये इस पर्व को उत्साह पूर्वक हर्षोल्लास के साथ मनाना बहुत ज़रूरी है। “वर्तमान युग में रक्षा बन्धन की प्रासंगिकता और ज़्यादा बढ़ी है।”
हमारा तो मानना है कि सरकार को इस प्यार, मोहब्बत, साम्प्रादायिक सौहार्द, आपसी विश्वास और भाईचारे के महत्वपूर्ण त्योहार को ”राष्ट्रीय पर्व” घोषित कर इसे मनाना अनिवार्य कर देना चाहिऐ। इससे सामान्यतय: महिलाओं और विशेषकर युवतियों के प्रति अत्याचार कम करने भी मदद मिलेगी।
हम, रक्षाबंधन पर्व पर राग द्वेष से ऊपर उठकर मैत्री का विकास करें। त्याग, संयम, प्रेम, मैत्री और अहिंसा, साम्प्रदायिक सौहार्द और आपसी विश्वास को अपने जीवन में ढालने का संकल्प लें। तभी देश और समाज में शांति और उन्नति संभव है।
ख़ुदावन्देआलम से इस दुआ के साथ, कि हमारी बहने स्वस्थ, समृध्द, सुदृढ़ और सुरक्षित रहें। आधुनिक युवा पीढी भाई-बहन के इस पवित्र बन्धन के महत्व को समझे और इसका मान-सम्मान रखे।
सभी देशवासियों को और आपको भी रक्षा बन्धन की हार्दिक शुभकामनाऐं। तहे-दिल से मुबारकबाद !!
(सैय्यद शहनशाह हैदर आब्दी)
समाजवादी चिंतक
उप अभियंता (बाह्य अभियांत्रिकी सेवाऐं)
भेल-झांसी (उ0प्र0), पिन-284129. मो.न.0941594354.imagesराखी

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