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क्या हों मुस्लिम समाज की प्राथमिकताएं ?
आज के हालात में क़ौम और मुल्क की फलाह ओ बहबूद के लिए दिल सोचने पर मजबूर और बैचेन है कि:
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जिस क़ौम के लोग इमाम और मोअज़्ज़िन का ख़ून चूस रहे हों और मस्जिदें संगे मरमर से सजाई जा रही हों,
तो क्या वो क़ौम तरक़्क़ी कर सकती है???
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जिस क़ौम के ग़रीब बीमारों के पास इलाज का कोई बन्दोबस्त ना हो——और क़ौम के डाक्टर की फ़ीस ग़ैर क़ौम के डॉक्टरों से ज़्यादा हो,
क्या वो क़ौम तरक़्क़ी कर सकती है????
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जिस क़ौम में पड़ौसी की बेटी कुँवारी बैठी हो, और बेवाओं और यतीमों के लिए कोई इंतिज़ाम ना हो,
और क़ौम के दौलत मन्द लोग उमराह पर उमराह कर रहे हों,
क्या वो क़ौम तरक़्क़ी कर सकती है ???
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जिस क़ौम के होनहार नौजवान बे रोज़गारी के शिकार हों और क़ौम के दौलतमंद लोग कारख़ाने या रोज़गार के ज़रिये पैदा करने के बजाए जलसे और जुलूस में लाखों रुपए ख़र्च कर देते हों,
क्या वो क़ौम तरक़्क़ी कर सकती है???
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जिस क़ौम के फुक़रा और ग़रीबों के पास सिर छुपाने की जगह ना हों——- क़ौम के दौलतमंद अपने महलों को सँवारने में लगे हों,
“क्या वो क़ौम तरक़्क़ी कर सकती है???
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सवाल बहुत हैं, फिलहाल इन चन्द सवालों के बारे में ही संजीदगी से सोचिए और कोई हल निकालिए ताकि मुल्क और क़ौम का कुछ भला हो साथ ही आख़िरत में भी अल्लाह और उसके रसूल के सामने सुरख़ुरू होया जा सके।
वस्सलाम।
सैयद शहनशाह हैदर आब्दी
समाजवादी मुफक्किर – झांसी।
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